चंदा रोटी सा लगे
||1||
चंचल मन की गति रुके , कर न सके आखेट
चंदा रोटी सा लगे , जब भूखा हो पेट ||
||2||
पंखे में ज्यों तीन पर ,है जीवन का ठाट
बाल , युवा औ वृद्धपन , रहते चक्कर काट ||
||3||
घाव दिखाते मत चलो , मत पालो यह रोग
तुम्हें मिलेंगे हाथ में , नमक लगाये लोग ||
||4||
भाई ना भाई लखे , बेटा लखे न बाप
आप रहे तुम हो गये , तुमसे हुये न आप ||
||5||
अंदर - अंदर घुटन है , बाहर से मुस्कान
कुछ खुशियों को ओढ़कर , जीता है इंसान ||
||6||
सर से लेकर पैर तक , रोम - रोम में आज
स्वारथ सबके मन भरा , तन से भागी लाज ||
||7||
दायें - बायें समय को , जो लेता है झेल
' कोमल ' कभी न हारता , वह जीवन का खेल ||
||8||
कवि पत्थर हैं मील के, दिल पर खुदे निशान
देते मंजिल का पता, युग की हैं पहचान ||
||9||
छुओ न दिल के तार को, बनो न तीरन्दाज
सदियों तक पीछा करेगी, मेरी आवाज ||
||10||
' कोमल ' कवि की कलम को, दिखलाओ मत तोप
इसकी स्याही में भरा, शिव का महा प्रकोप ||
||11||
तू मेरी संवेदना, को ठोकर मत मार
चाहे तो ले शौक से, गर्दन भले उतार ||
||12||
जब - जब आँखे नम हुयीं, मन भी हुआ उदास
तब - तब कविता ने दिया, एक नया विश्वास ||
||13||
एक प्यार के मोल पर, पायी अगणित पीर
एक बूँद भर सुधा है, सागर भर का नीर ||
||14||
नफरत के अंगार पर, धरो प्रेम की ओस
फूल उगेंगे हर कदम, ठंडा होगा जोश ||
||15||
प्यार न होगा धरा पर, विधवा होगी भोर
सावन की आवाज को, सुन न सकेगा मोर ||
||16||
जाति - पाति पूछे नहीं, प्रेम न पूछे धाम
बंधन सारे तोड़कर, पिये रूप का जाम ||
||17||
ऊपर से नीचे बहें, नदियाँ करके दाव
किन्तु प्रेम की नदी का, है विपरीत बहाव ||
||18||
मूल मंत्र है भावना, और आत्मविश्वास
जिसका जितना आँगना, उतना दिखे अकाश ||
||19||
आँगन में खुशियाँ लिखो, दीवालों पर प्यार
दरवाजों को खोल दो, तन मन हो उजियार ||
||20||
दौलत की इच्छा नहीं, प्यार चाहता प्यार
सिक्कों से चलता नहीं, दिल का कारोबार ||
||21||
उसको रोना ही पड़ा, जो आया इस देश
कर्म क्षेत्र है यहाँ पर, पीते जहर महेश ||
||22||
लक्ष्य हीन के मार्ग में, खड़े भूत बैताल
अँधियारे में तोड़ता, मस्तक से दीवाल ||
रचनाकार :- कोमल शास्त्री
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🤲🙏
ReplyDelete🤲🙏
ReplyDelete👌👌🙏🙏
ReplyDeleteNice poem
ReplyDeleteSir, you are truly a great artist...
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