अपनी खुली किताब ही सारी है जिन्दगी

 अपनी खुली किताब ही सारी है जिन्दगी








        द्यतन हिन्दी साहित्य में बेशुमार गजलें लिखी जा रही हैं। आज गजल अपने शाब्दिक अर्थ को पीछे छोड़ चुकी है। उसने अपना पैरहन बदल लिया है। नये शिल्प और फलक के साथ वह जमीनी हकीकतों के साथ जन–जीवन के हम–कदम चलना सीख गयी है।  
हिन्दी कवियों की रचनाओं में गजल का जादू सर चढ़कर बोल रहा है किन्तु गजल जैसी विदेशी शास्त्रीय विधा को हिन्दी–प्रकृति में ढालना और उसे लोकप्रियता देना यह कवि की क्षमता पर निर्भर है। खूबसूरत गजल कहने वालों की श्रेणी में धीरेन्द्र गहलोत "धीर" का नाम आदरणीय है।
इनकी गजलों में सरलता–तरलता के साथ यदि माधुर्य है तो प्रेम की प्यास भी है। संप्रेषण‌ीयता की क्षमता के साथ अपेक्षित लयदारी है जो पाठक के मर्मस्थल को छूती ही नहीं अपितु आकर्षित भी करती है। 
 " साहित्य सौरभ " धीर की चार गजलों के साथ आपके रूबरू है। जिनमें भाषायी जटिलता या धार्मिक अंधानुकरण के लिए स्थान नहीं है अपितु जियो और जीने दो का जागतिक संदेश है। सच–बयानी के साथ नए अंदाज और नए तेवर के पैनेपन के साथ अपनी बात सहजता से कहने का दम और तरक्की पसंद नजरिया है। प्रश्न है तो समाधान भी है। धर्म, मजहब, सामाजिक असमानता एवं वर्तमान समाज की थोथी आधुनिकता, व‌ाह‌्य‌ाडम्बर आदि वर्तमान त्रा–सदियों से पीड़ित कवि का विक्षोम गजलों में मुखरित है। राजनीति के बेनकाब चेहरे के साथ समाज की लाचारी को गहरे तक एहसास कराने में गजलें पूरी तरह सक्षम हैं।साहित्य समाज को स्वास्थ्यवर्धक संजीवनी देता है जिसे " साहित्य सौरभ " धीर की गजलों के माध्यम से आप तक पहुंचाकर आत्मतोष का अनुभव करता है। बस इतना ही – " हाथ कंगन को आरसी क्या ? "



1. हिन्दी गजल   (   अपनी खुली किताब ही सारी है   जिन्दगी  )   :-


जुल्मो-सितम के दौर की मारी है जिन्दगी,

सब कुछ लगाके दाँव पे हारी है जिन्दगी।


ये उम्र आँसुओं में गुजारी है दोस्तो,

ऐ-दोस्त समंदर से भी खारी है जिन्दगी।


मर मरके रोज-रोज भी जीना कुबूल है,

ये बेबसी का दौर भी जारी है जिन्दगी।


जिसने हर एक मोड़ पे मुझको दगा दिया,

उस बेवफा के साथ गुजारी है जिन्दगी।


कदमों तले जमीन का होता नहीं गुमाँ, 

कमजर्फ कायनात पे भारी है जिन्दगी।


हमने तो धीर प्यार में सब कुछ लुटा दिया,

अपनी खुली किताब ही सारी है जिन्दगी



2. हिन्दी गजल   (   दिल से दिल के तार मिलाने की  बात है  )   :-


दिल से दिल के तार मिलाने की बात है,

रिश्ता ये बार-बार निभाने की बात है।


बोते जो नफरतों की फसल जानते नहीं,

पल जिन्दगी के चार बिताने की बात है।


तुलसी, कबीर, जायसी, नानक का है वतन,

लगता ये ऐतबार जमाने की बात है।


हर मुश्किलों का मूल समाधान प्यार तो,

जज्बा ये बेशुमार जगाने की बात है।


फिर आएंगी वतन में हवाएं बाहर की,

मौसम को खुशगवार बनाने की बात है।



3. हिन्दी गजल   (   झूठ का वातावरण हम क्या करें   )   :-


सत नहीं होता सृजन हम क्या करें,

झूठ का वातावरण हम क्या करें।


हर गली आँगन मुडेलों पर उगे,

आज काँटो का चलन हम क्या करें।


प्रेम ही छलका किया जिनमें सदा,

हैं वही प्यासे नयन हम क्या करें।


एक कुटिया से भवन का फासला,

तय न कर पाए चरण हम क्या करें।


जो अमन की कामना करते रहे,

सो गए वो आचरण हम क्या करें।


धीर डिस्को कैबरों के शोर में,

मौन मीरा के भजन हम क्या करें।



4. हिन्दी गजल   (   हम महज संभावनाओं में जिए )   :-


हम महज संभावनाओं में जिए

सिर्फ कोरी कल्पनाओं में जिए।


सर्द रातों में ठिठुरता बालपन,

आप संसद और सभाओं में जिए।


कर्म से मुँह मोड़ कर भागे सदा,

धर्म सारा कंदराओं में जिए।


गीत वो अनुराग के गाएंगे क्या,

जो सदा दुर्भावनाओं में जिए। 


मंदिरों-गिरजों में ये गूंजे सदा,

हम सदा सबकी दुआओं में जिए।


छू सके न वो हकीकत की जमीं,

लोग जो खाली हवाओं में जिए।


बूँद सागर तक सतत बहती रही,

राह के पत्थर व्यथाओं में जिए।


दिल चुराना ही नहीं उनका हुनर,

धीर वो सोलह कलाओं में जिए।



रचनाकार :- धीरेन्द्र गहलोत "धीर"




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