मुझको न पुकारो

मुझको न पुकारो












1.   हिन्दी गजल     ( मुझको न पुकारो ) :-



मुझको न पुकारो कि अभी सो रहा हूँ मैं
आबे - हयात में कफन भिगो रहा हूँ मैं |
( आबे - हयात = अमृत जल )


जिस चीज के लिये तुझे मलाल है ऐ! दिल
उस चीज के काबिल तो अभी हो रहा हूँ मैं |
( मलाल = दुःख )


कुछ वक्त तो लगेगा ही रंग मिटाने में
जो रंग चढ़ गया है उसे धो रहा हूँ मैं |


यह रूप का सागर है गहराइयाँ न पूछ
ये ऊपरी सतह है जिसे टो रहा हूँ मैं |


तुम सामने हो बात करूँ या कि तुम्हें देखूँ
लालच में किसी घाट का न हो रहा हूँ मैं |


इस ओर चाँदनी है उस ओर चाँदनी सी
मुझको पता नहीं है कहाँ खो रहा हूँ मैं |


' कोमल ' तुझे बारूद ये जिन्दा न रखेगी
तेरे किये पे तेरे लिये रो रहा हूँ मैं |






2.   हिन्दी गजल  ( तनहाइयाँ भी ) :-




तनहाइयाँ भी हैं घिरी तनहाइयों से
खौफ खाती बेवफा परछाइयों से ।


लौटकर चातक बसेरे पर न आया
चातकी रूठी हुयी अमराइयों से ।


हम नदी को चैन से बहने न देंगे
है जलन उसकी हमें गहराइयों से ।


खून का रिश्ता भी है नाखून जैसा
लोग कटते जा रहे हैं भाइयों से ।


पाँव में हो चाहे जिसके ही बजेगी
डर नहीं पायल को है रुसवाइयों से ।

( रुसवाइयों = वदनामियों )


होती जरूरत जोश जज्बा खून की
इतिहास युँ बनता नहीं अँगड़ाइयों से ।

( जज्बा = भावना )


इंसान का मतलब ही ‘ कोमल ’ और है
हिन्दू मुस्लिम सिख या ईसाइयों से ।



रचनाकार :- कोमल शास्त्री





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