कलियों की आबरू

कलियों की आबरू 



















||1||


 जो दुख के आँसुओं में नहाया नहीं करते

वो प्यार को सीने से लगाया नहीं करते

फूलों का हार जिनको पहनने का शौक है

कलियों की आबरू वो बचाया नहीं करते ||



||2||


शब्दों को हवाओं में उड़ाया न कीजिये

मतलब के लिये सर को झुकाया न कीजिये

दुनिया में भूलने औ भुलाने को बहुत है

उपदेश बुजुर्गों के भुलाया न कीजिये ||



||3||


जहाँ अगम यह गम हो जाता

दिल भी स्वतः नरम हो जाता

अपना दीप आप बनने से

अन्धकार कुछ कम हो जाता ||



||4||


बेजा न इस्तेमाल कर ऐ चाहने वाले

रुखसत न कर उछाल कर ऐ चाहने वाले

मैं हूँ तेरे खयाल का टूटा हुआ हिस्सा

मुझ पर न युँ सवाल कर ऐ चाहने वाले ||



||5||


मुश्किलें गुजरती हैं यक दिया जलाने में

क्या कहें हवाओं को हैं तुली बुझाने में

मौका परस्त उल्लुओं का हाल देखिये

आग ही लगा दी है तेल के खजाने में ||



||6||


दिल में दौलत को मेहमान मत कीजिये

चुप हवाओं को तूफान मत कीजिये

अपनी सेहत पे जिसका बुरा हो असर

जिन्दगी उसपे कुर्बान मत कीजिये ||



||7||


दर्द को पहले अश्कों से धो जाइये

शान्त होकर मोहब्बत में खो जाइये

धीरे - धीरे हरारत जहाँ सुर्ख हो

पढ़ते - पढ़ते गजल मेरी सो जाइये ||



||8||


खुद-ब-खुद ही तबीयत मचल जायेगी

सूरते - हाल बिल्कुल बदल जायेगी

एक झटके में ' कोमल ' अनायास ही

बात सच्ची जुबाँ से निकल जायेगी ||




रचनाकार :- कोमल शास्त्री




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