आँटि न पइबा

आँटि न पइबा















||1||


यक दाँइ बँटा त बँटा बटिगै

अब लाख करा मुलु बाँटि न पइबा

 

यहि देस के बाग से गेना गुलाब

जुही कचनार कँ छाँटि न पइबा


मुँह सीयब ' कोमल ' बोरिन सों

जौ चाहा गदेलौ कँ डाँटि न पइबा


यक लाख प एक है भारी इहाँ

पुरखौ के बोलावा त आँटि न पइबा ||




||2||


माई क दूध पिया न तुँही

भल जीयत बा हमरो महतारी


सोवत बा अपनी निनिया

अरु जागत बा हमरी रखवारी


नेति खराब किहा तनिकौ

चुकवै कँ परे तोहैं कीमति भारी


' कोमल ' हाथ न खोंड़ करा

हम आँटब ना तोहरी अँकवारी ||




||3||


आँख देखाइस जे हमकाँ

हम ओकर आँख निकारि लिहे


' कोमल ' बेझिस जे हमकाँ

ओकरे बल काँ हम झारि लिहे


स्वारथ के बस आरत ह्वै

हम मोल केहू से न रारि लिहे


बाँह बटोरिस जे हमसे

पखुरा जरियै से उखारि लिहे ||




||4 ||


लाज न बा लतखोरन के

वन्है आपनि देह उघारि न लागै


आपनि पीर पहाड़ लगै

दुसरे क पिराय दुखारि न लागै


पीठि क धूरि झरी न तबौ

वनके पखना म बयारि न लागै


' कोमल ' साँच कही तोहँसे

हिकना क कहूँ प बजारि न लागै ||




||5||


उतपात करा जिनि तूँ जिव कै

अँखुरी पँखुरी सँखुरी मिटि जाये


गहना गुरिया क सवाल न बा

घर कै जोगई मसुरी बिकि जाये


भरि हींक जिआ औ जियै द हमैं

न त जीवन कै गगरी फुटि जाये


फुदका जिनि औरन के बल पै

अबकी पटके पँसुरी टुटि जाये ||




||6||


प्रेम पिरीति से जौ मिलब्या

रखबै हियरा म परान की नाईं


जौ परतीति औ रीति सवाचा

त साँचहु फेरब पान की नाईं


नीक कँ नीक अही हम ' कोमल '

बोला बिसेड़ी न बान की नाईं


जौं टेंटुआन्या औ आँखि तरेर्या

त खेदि के मारब स्वान की नाईं ||




रचनाकार :- कोमल शास्त्री





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