लक्ष्मण रेखा

लक्ष्मण रेखा













हलके पड़ते हैं मिरगा से भगवन, ऐ लछिमन! जाके छुड़ा लो

आ रही है सदा उनकी वन से, अपने भइया को जाके बचा लो ||


एक तो वे अकेले गये हैं दूसरे कोई साथी नहीं है

याद करता है भाई को भाई, बान तरकस से अपने निकालो ||


उनकी आवाज से ये है साबित, जान खतरे में भारी फँसी है

मेरा सिन्दूर लुटता है वन में, जाओ जल्दी से मेरी दुआ लो ||


बोले सीता को समझा के लछिमन शीस चरणों में अपना झुकाये

मार सकता न भइया को कोई, व्यर्थ संदेह मन से हटा लो ||


बोलीं सीता इरादा तुम्हारा मुझपे लछिमन गलत हो गया है

स्वप्न में भी न पावोगे मुझको, तुम इरादे को अपने हटा लो ||


जैसे गोली लगी हो कलेजे वैसे बोली लगी ये लखन को

चल दिये थाम करके कलेजा, खींच रेखा को ऐ सुनने वालों ||


बोले रेखा से बाहर न होना फिर कभी मेरी गलती न देना

जान कुर्बान ' कोमल ' धरम पर, लौटने तक खुद को संभालो ||



रचनाकार :- कोमल शास्त्री



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