लक्ष्मण रेखा
हलके पड़ते हैं मिरगा से भगवन, ऐ लछिमन! जाके छुड़ा लो
आ रही है सदा उनकी वन से, अपने भइया को जाके बचा लो ||
एक तो वे अकेले गये हैं दूसरे कोई साथी नहीं है
याद करता है भाई को भाई, बान तरकस से अपने निकालो ||
उनकी आवाज से ये है साबित, जान खतरे में भारी फँसी है
मेरा सिन्दूर लुटता है वन में, जाओ जल्दी से मेरी दुआ लो ||
बोले सीता को समझा के लछिमन शीस चरणों में अपना झुकाये
मार सकता न भइया को कोई, व्यर्थ संदेह मन से हटा लो ||
बोलीं सीता इरादा तुम्हारा मुझपे लछिमन गलत हो गया है
स्वप्न में भी न पावोगे मुझको, तुम इरादे को अपने हटा लो ||
जैसे गोली लगी हो कलेजे वैसे बोली लगी ये लखन को
चल दिये थाम करके कलेजा, खींच रेखा को ऐ सुनने वालों ||
बोले रेखा से बाहर न होना फिर कभी मेरी गलती न देना
जान कुर्बान ' कोमल ' धरम पर, लौटने तक खुद को संभालो ||
रचनाकार :- कोमल शास्त्री
#################
Bahut accha
ReplyDelete👏👏
ReplyDelete