अगर प्रेम की नाव न होती

अगर प्रेम की नाव न होती











अगर प्रेम का भाव न होता तो ईश्वर साकार न होता

हर काया पत्थर बन जाती यह जीवन त्यौहार न होता |


नदियों के अधरों पर अनगिन

लहरों की मुस्कान न होती

कभी मिलन की उत्कंठा में

सागर से पहचान न होती

मन के कभी करार न गिरते

गीले - गीले नैन न होते

नैनों की अलिखित भाषा के

कभी रसीले बैन न होते


प्रेम न होता तड़प न होती कोई भी उद्गार न होता

हर काया पत्थर बन जाती, यह जीवन त्यौहार न होता |


प्रेम न होता दो हृदयों के

कभी मिलन की बात न होती

मानवता की अर्थी उठती

ममता की बरसात न होती

कस्तूरी - सी साँस न होती

साँस - साँस सौगात न होती

पशु - पक्षी चर - अचर सभी की

कोई भी औकात न होती


धरती का आँचल न महकता, फूलों का संसार न होता

हर काया पत्थर बन जाती, यह जीवन त्यौहार न होता |


धरती का अभिषेक न होता

जल धारा खूनी हो जाती

किरन - किरन विधवा हो जाती

माँग - माँग सूनी हो जाती

प्रेम न होता तो धरती पर

कोई भी इंसान न होता

शायद कोई पंथ न होता

कण - कण में भगवान न होता


यहाँ पाप की पूजा होती, कोई भी अवतार न होता

हर काया पत्थर बन जाती, यह जीवन त्यौहार न होता |


रास रचाता यहाँ न कोई

राधा की पीड़ा मर जाती

कभी राम वनवास न होता

क्यों कोई सीता हर जाती

विन्दु - विन्दु में सिन्धु न होता

मनु को खोजे राह न मिलती

शतरूपा के अन्तस्तल में

कभी कमल सी चाह न खिलती


अगर प्रेम की नाव न होती, तो कोई उस पार न होता

हर काया पत्थर बन जाती, यह जीवन त्यौहार न होता |


कभी क्षितिज के अधर न खुलते

मन कोई मजबूर न होता

कभी गगन में चाँद न खिलता

धरती का दुःख दूर न होता

प्रेम न होता तो अनन्त में

कभी मोक्ष का द्वार न खुलता

विश्व मोहिनी को जीवन भर

कोई राजकुमार न मिलता


कभी एकता के सूरज के गले विजय का हार न होता

हर काया पत्थर बन जाती, यह जीवन त्यौहार न होता |




रचनाकार :- कोमल शास्त्री





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🙏

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