लोग कहते हैं हमें
||1||
लोग कहते हैं हमें अब मुस्कराने के लिये
और खिलते फूल जैसा खिलखिलाने के लिये
कैसे अपनी जिन्दगी के साथ वो धोखा करे
जो बशर पैदा हुआ है गम उठाने के लिये ||
||2||
जिसे रोने की आदत है उसे आता नहीं हँसना
औ दिल में नाग है जिसके न छोड़ेगा कभी डँसना
कहीं लालच कहीं गुस्सा कहीं है मोह का फन्दा
मछलियों के मुकद्दर में है आखिर जाल में फँसना ||
||3||
सफर में साथ चलते हैं कदम खींचा नहीं करते
व अपने साथियों के साथ भी धोखा नहीं करते
हमारा मशविरा शायद तुम्हें ' कोमल ' लगे अच्छा
परिन्दे घर परिन्दों के कभी फूँका नहीं करते ||
||4||
ठोकरों से ही सधी है जिन्दगी
आग की बहती नदी है जिन्दगी
तू पकड़ने की इसे कोशिश न कर
मुठ्ठियों में कब बँधी है जिन्दगी ||
||5||
हर किफायत हद में होनी चाहिये
हर शिकायत हद में होनी चाहिये
अहमियत रिश्तों की रखने के लिये
हर हिदायत हद में होनी चाहिये ||
||6||
समझो उससे स्वयं विधाता रूठे हैं
हार हृदय के जहाँ हार कर टूटे हैं
मैं कहता हूँ कहीं प्यार की बस्ती में
रिश्ते अगर न निभ पाये तो झूठे हैं ||
||7||
प्रीति-प्यार के पंछी हरदम चहका करते
सच्चाई के अंगारे भी दहका करते
परिचय के मोहताज न होते दिलवाले
खुश्बू वाले फूल हमेशा महका करते ||
||8||
उम्र जिसके साथ है तुमने गुजारी
अब जरूरत और है उसको तुम्हारी
जिन्दगी ढलती हुयी ठहरी सी है
सिलसिला ठहराव का लगता है भारी ||
||9||
जज्बे का वीर होना कुछ और बात है
तरकश का तीर होना कुछ और बात है
दौलत नहीं सिखाती अखलाक की बातें
दिल का अमीर होना कुछ और बात है ||
||10||
जो मिला तुझको बहुत बेहतर मिला
रोटी मिली , कपड़ा मिला घर मिला
क्या हुआ ' कोमल ' जो तेरी नींद को
फूल के माफिक नहीं बिस्तर मिला ||
रचनाकार :- कोमल शास्त्री
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