पीपर पात बेनिया

पीपर पात बेनिया













धरती यौवन से भरपूर , पहिरे माङी मा सिन्दूर

खड़ा धीरे से डोलावै पीपर पात बेनिया ||


धुरिया मा लोटैं गाँव कै कन्हइया

राजमहल जेकै टुटही मड़इया

मटिया कै दियना बरथ भरि नेहिया

जिनगी क सुख-दुख लइके अगेहिया


श्रम से धरती सींचा , घर से दूर गरीबी खींचा

ह्वइहैं गाँव कै किसान अब राजा रनिया

खड़ा धीरे से डोलावै पीपर पात बेनिया ||


मुड़वा पै ढोया समइया कै गठरी

चमवा लटकिगै पियर भई ठठरी

समौ - सुकाल न सब दिन साथे

भोगे इ देहिया लिखा जे माथे


ढहिहैं बालू कै ई भीत , छोड़ा धीर न मन कै मीत

सुखिहैं अँसुवन धार नयन पनिया

खड़ा धीरे से डोलावै पीपर पात बेनिया ||


मागत बाय धरती अब पानी

बदरा कै रसे - रसे छलकै जवानी

धरती कै धरम अकसवा क दाया

खेतवा मा लहके पसिनवा क माया


बरसे खरिहनवा मा सोना , होई सुखी गाँव कै कोना

गोरी ललना खेलावैं , भरि - भरि कनिया

खड़ा धीरे से डोलावै पीपर पात बेनिया ||


घमवा मा खड़ी दिन भर बँसवारी

सँझवा सनेह भरि भेंटै अँकवारी

नये - नये फुलवा , फुलान रंग सनई

धरती पै उतरीं अकसवा से तरई


सोनवा जेस घमवा पियराये , दिन दूसर धरती कै आये

सोहै चुनरी तिरंगा में रँगाये धनिया

खड़ा धीरे से डोलावै पीपर पात बेनिया ||




रचनाकार :- कोमल शास्त्री




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