एक हवा के इशारे में
||1||
अपनों के लिये धन दौलत है , अपनों के लिये ही तो है सपना
सपनों को सँजोने में जीवन को , अपनों की ही आग में है तपना
अनदेखी हुयी इनकी यदि तो , सब व्यर्थ अकेले का है खपना
किस काम की व्यस्तता आप की है , दुःख - दर्द न बाँट सके अपना ||
||2||
जाने बने अनजाने रहे , नहीं कोई कभी पहचाना मिला
प्यार न मागे मिला है कभी , बिना मागे घृणा का खजाना मिला
सोने में और सुहागा पड़ा , अपनों से ही ' कोमल ' ताना मिला
वेदना घायल होती रही , सपनों को यही हरजाना मिला ||
||3||
घर घाट न बाट सपाट मिला , शैशव जिमि भीख का दाना मिला
दुख दैन्य मिला निरुपाय निरा , अपना सब भाँति बेगाना मिला
कद पंक के अंक में था लिपटा , पर संग असीम सयाना मिला
कवि ' कोमल ' देन सरस्वती की , रज को नभ सा नजराना मिला ||
||4||
उस पीर को कैसे भुलाऊँ भला , जिस पीर ने राह दिखायी मुझे
पतझार का पातर पात हूँ मैं , इक आँधी उड़ाकर लायी मुझे
उजड़े हुये बाग बिरासत के , मिले फूल से काँटे सवायी मुझे
कभी मैने बहार को देखा नहीं , न बहार ही देखने आयी मुझे ||
||5||
जिस रूप में जो भी मिला मुझको , सुख या दुःख जैसे किनारा मिला
न तो जाति पढ़ी न तो धर्म पढ़ा , जो पवित्र दिखा वही प्यारा मिला
बदला नहीं रंग गया मुझसे , माँ सरस्वती का जो सहारा मिला
तुझको तो न तेरा मिला अपना , मुझको जग सारा का सारा मिला ||
||6||
मधुपान का देते निमंत्रण जो , विषपान कराते - कराते गये
आये थे राह दिखाने को जो , खुद राह पे आते ही आते गये
दुर्भाग्य के ' कोमल ' लेख लिखे फिर जिल्द बनाते-बनाते गये
फूल बिछाने को आये थे जो , वही शूल बिछाते - बिछाते गये ||
||7||
हम चार दिनों के लिये हैं टिके , अपने घर में मेहमान यहाँ
हमको भी यहाँ से है जाना चला , इसका न किसी को है ध्यान यहाँ
बुझ जायेगा ' कोमल ' दीपक सा , कुछ भी न बचेगा निशान यहाँ
बस एक हवा के इशारे में ही , गिर जायेगा पूरा मकान यहाँ ||
रचनाकार :- कोमल शास्त्री
#################
🙏
👌
ReplyDelete