बात है पहाड़ सी
||1||
आँख नम हुयी हैं जो यहाँ तुम्हारे सामने
तोड़ दी कसम जो खाई थी तुम्हारे सामने
जल रहा है आज भी हृदय उसी की आग में
बात है पहाड़ सी खड़ी हमारे सामने ||
||2||
मौन बैठिये जरा सा मुस्करा के देखिये
रूप की प्रभा की धार मे नहा के देखिये
खिल उठेगा मन स्वतः ही दर्द के दयार मे
सुर बने तो जिन्दगी को गुनगुना के देखिये ||
||3||
कर्ण द्वार बन्द है न आज तक खुला कभी
आँख का प्रकाश जो गया न आ सका कभी
हम प्रभात की तरह सहज हुये न शान्त ही
दिल की बात को किसी ने दिल से है सुना कभी?
||4||
रो रहे हैं गीत को भी हम रुके - रुके हुये
खो गये हैं भीड़ में कहीं बँधे - बँधे हुये
व्यस्तता सघन हुयी है आज की जमीन पर
सो गये हैं हम विचार मे थके - थके हुये ||
||5||
स्वप्न फिर नये - नये उठेंगे कल सजायेंगे
आज सो गये हैं कल नये कदम बढ़ायेंगे
एक - एक पल निकल के मुठ्ठियों से जा रहा
आज मन को कल नहीं है , कल भी कल न पायेंगे ||
||6||
मर गया अतीत और जी रहा भविष्य है
वर्तमान है हवा सुगन्ध के सदृश्य है
बोझ से लदी हुयी तनाव मे खिंची हुयी
जिन्दगी भी धूप - छाँव का अजीब दृश्य है ||
रचनाकार :- कोमल शास्त्री
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