शिव जी कै बरतिया
देखै शिव जी कै बरतिया जनता सगरी ||
बने बराती भूत - प्रेत सब दुलहा बने त्रिपुरारी
बैल चढ़े वै रूप भयंकर सारी बदन उघारी
सोहै माथे पै किरनियाँ, जनता सगरी ||
देखै शिव जी कै बरतिया जनता सगरी ||
तिलक त्रिपुण्ड साँप की माला जटा जूट सिर काला
तीसर नयन बिराजे शिव के विकट बने मतवाला
चमकै चन्दा कै चननियाँ, जनता सगरी ||
देखै शिव जी कै बरतिया जनता सगरी ||
डमरू औ त्रिशूल लिये शिव गले में पहिरे माला
भाँग धतूरा खाये माते ओढ़े हैं मृगछाला
सोहै सुन्दर बरन शरीरिया, जनता सगरी ||
देखै शिव जी कै बरतिया जनता सगरी ||
बने हैं दुलहा भोला शंकर सजी बरतिया भारी
पहुंचे ' कोमल ' तुरत जाय वै हिमगिरि निज ससुरारी
कांपै हिमगिरि की नगरिया, जनता सगरी ||
देखै शिव जी कै बरतिया जनता सगरी ||
रचनाकार :- कोमल शास्त्री
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