पूजा पूजा धान

पूजा पूजा धान

















||1||


पूजा पूजा धान कै, पूजै मन कै घाव
पूजा इहै किसान कै, इहै भक्ति औ भाव ||



||2||


खुरपी खुरपा बेलचा, फरुहा और कुदार
पौरुष औ बलिदान कै, यै हमार हथियार ||



||3||


केसे आपन दुख कही, और करी फरियाद
उप्पर - उप्पर सब लखै, केउ न लखै बुनियाद ||



||4||


जब जग सोवै राति मा, निधरक चादर तान
तब किसान पलिवार लै, सटकै सूखा धान ||



||5||


जेठ दुपहरी मा जरै, ठरै माघ कै राति
तब जुगाड़ गुर कै कहूँ, कै पावै यहि भाँति ||



||6||


यहर झमकि कै दइउ जब, बरसै अरर मचाय
वहर बज्र बनि धान तब, किरसक रहा निराय ||



||7||


वहर वायदा यहर बा, मँहगायी कै मार
नेता पूँजीपति दुऔ, हमकाँ दिहे उजार ||



||8||


केकर - केकर गुन कही, केकर गायी गीत
केकरी डारी लागि कै, रोई बल भै मीत ||



||9||


खरई बनई बान्हि मुँह, करी जवानी होम
वनकाँ घिउ चपरी मिली, हमकाँ मिला विलोम ||



||10||


' कोमल ' हमरे करम कै, फल चाखैं वै लोग
जेकाँ माटी कै महक, लगै नाक कै रोग ||



||11||


चउवा - चाँगर पालि कै , महज जिआई पेट
दाना काँ नादान कहि , सेठ लगावै रेट ||



||12||


पाला पाथर से गहन, मनइन कै झटकार
गजब किसानी पै परी, मनरेगा कै मार ||



||13||


मन रे! गा कुछ और अब, छोड़ भेंड़ कै तान
निकरब होये अति कठिन, आगे और धँसान ||



||14||


' कोमल ' डूँड़ा बइठि के, चूनी चोकर खाय
बाँड़ा पैरा खाइ के, गोड़ तोरावै जाय ||



||15||


खेती घाटा कै रही, मुला किहिस अब ओर
सँचरा जब से गाँव मा, मनरेगा कै जोर ||



||16||


बढ़ी मजूरी झोरि कै, मुलु तिराय ना काम
चोख होय जौ काम तौ, गाढ़ अँटाय न दाम ||



||17||


नटई तर ना जात बा, अब नेतन कै बात
झलका डारिन जौन वै, वइसै बाय भभात ||



||18||


पहिया चला विकास कै, देखै मा निक लाग
मुलु किसान की आँत मा, अबौ बरति बा आग ||



||19||


भाव बढ़ा हर चीज कै, कइके हाहाकार
लेकिन गोहूँ धान कै, लुढ़की रहै बजार ||



||20||


चीज खरीदी रोइ कै, बेंची तौ रिरिआय
जेब घूम फिरि कै इहाँ, हमरै काटी जाय ||





रचनाकार:- कोमल शास्त्री







############







🙏

1 Comments

Previous Post Next Post