कह जाता है मौन
||1||
' कोमल ' दिल के दर्द को , पूछ रहा है कौन
कभी बोलने से अधिक , कह जाता है मौन ||
||2||
चलते - चलते राह में , बैठ गये जो लोग
उनका मंजिल से कभी , हो न सका संयोग ||
||3||
बेमानी की खुल रही , लकालक्क दुकान
बेइजत्त बाजार में , होता है ईमान ||
||4||
किस चिंता में आप हैं , बैठे हुए उदास
सब ऊपर वाला करे , उसे लगे जो रास ||
||5||
रेत - रेत है जिन्दगी , कड़ी धूप सी चाह
तन - मन दोनों ही जले , छाया मिली न राह ||
||6||
जिसकी जैसी समझ है , वैसा ही बर्ताव
अपनी - अपनी दृष्टि है , अपना - अपना भाव ||
||7||
मैंने कितनी अर्जियाँ , लिखीं शहर के नाम
करो न मेरे गाँव की , संस्कृति को नीलाम ||
||8||
मतलब के संसार में, रिश्तों की है बाढ़
रिश्ते फिर रिसते वही, पड़े समय जब गाढ़ ||
||9||
बलि का बकरा आदमी, हुआ जमाना खोट
मन चाहा सब कीजिये, अगर संग है नोट ||
||10||
भारत अपने भाग्य को, कोस रहा है आज
पारस लोहा हो गया, मिट्टी हुआ अनाज ||
||11||
निर्धन को सारी सजा, निर्धन को कानून
धनवानों के देश में, अभी माफ है खून ||
||12||
काम न कोई है कठिन , मत पीछे को भाग
नहीं असंभव कुछ अरे , यदि अंदर है आग ||
रचनाकार :- कोमल शास्त्री
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🙏
👏👏
ReplyDeleteSo motivative
ReplyDeleteNext level thinking
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